इस कहावत या मुहावरे का मतलब ये है कि किसी काम को पूरा करने के लिए न तो इतना सामान होगा और न ही वो काम पूरा होगा. सीधे शब्दों में कहें तो किसी काम के लिए पर्याप्त चीज नहीं होगी और जब चीज ही नहीं होगी तो काम पूरा ही नहीं होगा.
चैत में गुड़, वैशाख में तेल, जेठ में यात्रा, अषाढ़ में बेल, सावन में हरे साग, भादौ में दही, क्वार में दूध, कार्तिक में छाँछ, अगहन में जीरा, पूस में धनिया, माध में मिश्री और फागुन में चने खाना हानिप्रद है।